जैन धर्म में साधु जी को वंदना करना उत्तम माना जाता है, जैन शास्त्रो में साधु वंदना का विशेष महत्व बताया गया है, प्रत्येक श्रावक - श्राविका को यथाशक्ति साधु- साध्वी के दर्शन अवश्य करने चाहिए यह परम सौभाग्य कि बात है, अगर आप साधु- साध्वी के दर्शन न भी कर पाउो तो सामायिक में बड़ी साधु वदंना व लघु साधु वंदना का पाठ अवश्य करें।
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लघु साधु वंदना
साधुजी ने वंदना नित नित कीजे, प्रह उगमतेसुर रे प्राणीनीच गतिमां ते नहीं जावे, पामे रिद्धि भरपूर रे प्राणी (१)मोटा ते पंच महाव्रत पाळे,छकायना प्रतिपाल रे प्राणीभ्रमर भिक्षा मुनि सूझती लेवे, दोष बेतालीस टाळ रे प्राणी (२)रिद्धि संपदा मुनि कारमी जाणे, दीधी संसारने पूंठ रे प्राणीएरे पुरुषनी बंदगी करतां, आठे करम जाय तूट रे प्राणी (३)एक एक मुनिवर रसना त्यागी, एक एक ज्ञान भंडार रे प्राणीएक एक मुनिवर वैयावच्च वैरागी, एना गुणनो नावे पार रे प्राणी (४)गुण सत्तावीस करीने दीपे, जीत्या परिषह बावीस रे प्राणीबावन तो अनाचार ज टाळे, तेने नमावुं मारुं शीश रे प्राणी (५)
पढिये - सामायिक सूत्र
जहाज समान ते संत मुनीश्वर, भव्य जीव बेसे आय रे प्राणीपर उपकारी मुनि दाम न मांगे, देवे ते मुक्ति पहोंच्या रे प्राणी (६)ए चरणे प्राणी साता रे पावे, पावे ते लील विलास रे प्राणीजन्म,जरा ने मरण मिटावे, नावे फरी गर्भावास रे प्राणी (७)एक वचन ए सद्दगुरु केरुं, जो बेसे दिलमांय रे प्राणीनरक गतिमां ते नहि जावे, एम कहे जिनराय रे प्राणी (८)प्रभाते उठीने उत्तम प्राणी, सुणो साधुनां व्याख्यान रे प्राणीए रे पुरुषोनी सेवा करतां, पावे ते अमर विमान रे प्राणी (९)संवत अढार ने वर्ष आडत्रीसे, “बुसी” ते गाम चोमास रे प्राणी“मुनि आस्करणजी” एणी पेरे जंपे, हुं तो उत्तम साधुनो दास रे प्राणी (१०)
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