जब कभी भी जैन श्रावक जैन साधु-साध्वी जी को देखतें है तो तिक्खुत्तो के पाठ द्वारा साधु माहाराज कि वंदना कि जाती है, चाहे साधु जी कही पर भी दिख जायें वही सें जैन श्रावक अपना नमस्कार कर देतें है।
गुरु वंदना का पाठ
तिक्खुत्तो, आयाहिणं-पयाहिणं करेमि।
वंदामि-नमंसामि।
सक्कारेमि-सम्माणेमि, कल्लाणं- मंगलं, देवयं-चेइयं,पज्जुवासामि।
मत्थएण वंदामि ।
गुरुवदंना के पाठ का हिन्दी भावार्थ
भगवन् ! दाहिनी ओर से प्रारंभ करके पुनः
दाहिनी ओर तक आप की तीन बार प्रदक्षिणा
करता हूँ, वन्दना करता हूँ, नमस्कार करता हूँ,
सत्कार करता हूँ, सम्मान करता हूँ। आप
कल्याणरूप हैं, मंगलरूप हैं, गुरुदेव ! आपकी
मन-वचन और काया से पर्युपासना-सेवा-भक्ति
करता हूँ। विनयपूर्वक मस्तक झुकाकर आपके
चरण-कमलों में वन्दना करता हूँ।
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" जय जिनेन्द्र ".
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