जैन धर्म में चक्रवर्ती

Abhishek Jain
0
जैन धर्म में चक्रवर्तीयो की संख्या 12 होती है, संपूर्ण पृथ्वी के राजा होते हैं,जैन मान्यतानुसार धरती के 6 खंड होते हैं, और यह 6 खंड के मालिक होते हैं, इस कालखंड में प्रथम चक्रवर्ती भगवान ऋषभदेव के पुत्र भरत चक्रवर्ती थे। जैन मान्यता अनुसार कोई विशिष्ट पुण्य आत्मा ही चक्रवर्ती का पद धारण करती है।


चक्रवर्ती जैन धर्म के विशिष्ट शलाका पुरुषों में गिने जाते हैं।
चक्रवर्ती की विशिष्टता होती है, इन्हीं विशेषताओं में से है, चक्रवर्ती के पास रत्नों का उत्पन्न होना, एक चक्रवर्ती के पास सात दिव्य रतन होते हैं।

जैन धर्म में चक्रवर्ती


चक्रवर्ती के सात दिव्य रत्न-:

1. चक्र रतन

2. पटरानी

3. दिव्य रथ

4. बहुमूल्य रतन

5. अपार धन संपदा

6. दिव्य घोड़ा

7. दिव्य हाथी


जैन मान्यतानुसार चक्रवर्ती के पास ये रतन उचित समय पर उत्पन होते है, जो चक्रवर्ती होने कि पृष्टि करते है। चक्रवर्ती में अपार बल पाया जाता है । वह अपने पराक्रम से सम्पूर्ण पृथ्वी को जीत कर चक्रवर्ती सम्राट बनता है । वह अपने दिव्य रत्नो का प्रयोग कर धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष चारो पुरुषार्थ को पूरा करने का प्रयास करता है । चक्रवर्ती के पास धन, वैभव , यश आदि होते है। इसके साथ हि दिव्य रत्नो के साथ हि चक्रवर्ती के पास 9 प्रकार कि विशेष विद्या होती है जिन्हे निधियाँ कहा जाता है । इन्की संख्या 9 होने के कारण इन्हे नवनिधियाँ भी कहा जाता है।

जानिये - जैन धर्म में बलदेव कौन होते है ?

चक्रवर्ती कि नवनिधियो के नाम

1. नैसर्प निधि

2. पांडुक निधि

3. पिंगल निधि

4. सर्वरत्न निधि

5. महापद्म निधि

6. काल निधि

7. महाकाल निधि

8. माण्व निधि

9. शंख निधि

जानिये - जैन धर्म में गणधर कौन होते है ?

जैन धर्म के 12 चक्रवर्ती
1. भरत जी

2. सगर जी

3. मघवा जी

4. सनत्कुमार जी

5. शांतिनाथ जी

6. कुंथुनाथ जी

7. अरहनाथ जी

8. सुभौम जी

9. पद्म जी

10. हरिषेण जी

11. जयसेन जी

12. ब्रह्मदत्त जी

जानिये - जैन धर्म में शलाकापुरूष

अगर कोई गलती हो तो "मिच्छामी दुक्कड़म"

एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

कृपया कमेंट बॉक्स में कोई भी स्पैम लिंक न डालें।

एक टिप्पणी भेजें (0)