जैन धर्म में विहरमान तीर्थंकर कि संख्या 20 मानी गई है। ये वर्तमान अरिहंत है, जब भी हम नवकार महामंत्र बोलते है, तब हम सबसे पहले इन्ही विरहमान तीर्थंकरो को नमस्कार करते है।
जब हम कहते है,णमो अरिहंताणं तब हम अरिहंत भगवान को नमस्कार करते है, क्योकि भगवान महावीर तो निवार्ण प्राप्त कर सिद्ध हो गये है, और वह णमो सिद्धाणं में ध्याये जाते है।
विहरमान का अर्थ होता है विराजमान अर्थात् जो वर्तमान में मौजूद है, जैन धर्म के 20 विहरमान तीर्थंकर इस समय महाविदेह क्षेत्र में विचरण कर रहे है, सीमंधर स्वामी जी इस महाविदेह क्षेत्र के प्रथम तीर्थंकर है। जब भी हम कोई उपवास करते है, तब हम 'श्री सिंमधर स्वामी' जी कि आज्ञा लेते है, क्यो? क्योकि वह अरिहंत भगवान है, जो इस समय महाविदेह क्षेत्र में विचरण कर रहे है ।
क्योकि इस संसार में धर्म का लोप कभी भी नही होता । इसलिए महाविदेह क्षेत्र में सदा चौथे आरे के समय जैसी व्यवस्था रहती है और सदैव यहाँ पर तीर्थंकर महाप्रभु विराजमान होते है । अतः अरिहंत प्रभु सदैव महाविदेह क्षेत्र में विरहमान तीर्थंकर के रूप में विराजित होते है ।
जानिये - जैन धर्म के 24 तीर्थंकर
जैन धर्म के 20 विहरमान तीर्थंकरो के नाम -:
1. श्री सिंमधर स्वामी जीअरिहंत भगवान कि जय
बहोत अच्छी जानकारी ! जय जिनेंन्द्र
जवाब देंहटाएं🙏
जवाब देंहटाएं"जय जिनेन्द्र"
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