जैन धर्म में सामायिक आत्म साधना का जरिया है, चाहे साधु-साध्वी हो या श्रावक- श्राविका सब के लिए प्रतिदिन कम से कम एक सामायिक तो होनी हि चाहिए। सामायिक 48 मिनट कि अवधि कि होती है ,और सामायिक ग्रहण करने के सूत्र होते है ।
जानिये - जैन धर्म में सामायिक क्या है ?
सामायिक ग्रहण करने के 9 सूत्र होते है, तथा सामायिक पारणे के लिए सामायिक पारणे का पाठ होता है। इस प्रकार से सामायिक के कुल 10 सूत्र होते है-:
सामायिक सूत्र
1.णमोक्कार मंत्र का पाठ
णमो अरिहंताणं,
णमो सिद्धाणं-
णमो आयरियाणं।
णमो उवज्झायाणं,
णमो लोए सव्वसाहूणं ।।1।।
एसो पंच णमोक्कारो, सव्व पाव प्पणासणो।
मंगलाणं च सव्वेसिं, पढम हवई मंगलं।।2। ।
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2.गुरु वंदना का पाठ
तिक्खुत्तो, आयाहिणं-पयाहिणं करेमि। वंदामि-नमंसामि।
सक्कारेमि-सम्माणेमि, कल्लाणं- मंगलं, देवयं-चेइयं, पज्जुवासामि। मत्थएण वंदामि ।
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3.देव गुरु धर्म सम्यकत्व का पाठ
अरिहंत मह देवो, जावज्जीव सुसाहुणो गुरुणो।
जिण-पण्णत्तं तत्तं, इअ ‘सम्मत्तं’ मए गहिएं ।1।
गुरु गुण का पाठपंचिदिय संवरणो, तह नवविह बंभचेर- गुत्तिधरो।
चउव्विह कसाय-मुक्को, इअ अट्ठारस गुणोहिं संजुत्तो ।2।
पंच महव्वय-जुत्तो, पंच-विहायार-पालण-समत्थो।
पंच-समिओ तिगुत्तो, छत्तीस गुणो ‘गुरु’ मज्झ ।3।
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4.ईर्यापथ आलोचना का पाठ
इच्छाकारेणं संदिस्सह, भगवं! इरियावहियं पडिक्कामि।
इच्छं, इच्छामि पडिक्कमिउं, इरियावहियाए-विराहणाए।
गमणागमणे, पाणक्कमणे, बीयक्कमण, हरियक्कमणे।
ओसा-उत्तिंग-पणग-दग-मट्टी-मक्कडा-संताणां, संकमणे।
जे मे जीवा विराहिया,एगिंदिया, बेइंदिया, तेइंदिया,
चउरिंदिया, पंचिंदिया। अभिहया, वत्तिया, लेसिया,
संघाइया, संघट्टिया, परियाविया, किलमिया, उद्दविया,
ठाणाओ ठाणं संकामिया, जीवियाओ ववरोविया,
तस्स मिच्दा मि दुक्कडं।
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5.कार्योत्सर्ग प्रतिज्ञा का पाठ
तस्स उत्तरी-करणेणं, पायच्छित-करणेणं,
विसोहीकरणेणं, विसल्ली करणेण, पावाणं कम्माणं
णिग्घायणट्ठाए, ठामि काउस्सग्गं।
अण्णत्थ, ऊससिएणं, नीससिएणं, खासिएणं-छीएणं-
जंभाइएणं, उड्डूएणं, वायनिसग्गेणं, भमलिए-पित्तमुच्छाए,
सुमुमेहिं अंग-संचालेहिं-सुहुमेहिं खेल-संचालेहिं-सुहुमेहिं
दिट्ठी-संचालेहिं, एवमाइएहिंआगारेहिं-अभग्गो- अविराहिओ,
हुज्ज मे काउस्सग्गो, जाव अरिहंताणं भगवंताणं
नमोक्कारेणं न पारेमि, ताव कायं ‘ठाणेणं मोणेणं-
झाणेणं’ अप्पातणं वोसिरामि। ।
6.ध्यान करने का पाठ
कायोत्सर्ग में आर्तध्यान-रौद्रध्यान, ध्यायें हों, धर्मध्यान-
शुक्लध्यान न ध्यायें हों, तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।
कायोत्सर्ग में मन, वचन, काया के योग अशुभ
प्रवर्ताएँ हों, तस्स मिच्छा मि दुक्कडं। ।
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7.लोगस्स चतुर्विंशति-स्तव का पाठ
अरिहंते उज्जोयगरे, धम्म-तित्थयरे, जिणे।
अरिहंते कित्तइस्सं, चउवीसं पि केवली ।1।
उसभ-मजियं च वंदे, संभव-मभिणंदणं च, सुमइं च।
पउमप्पहं सुपासं, जिणं च, चंदप्पहं वंदे ।2।
सुविहिं च, पुप्फदंतं, सीयल-सिज्जंस-वासुपुज्जं च।
विमल-मणंतं च जिणं, धम्मं संतिं च वंदामि ।3।
कुंथुं अरं च मल्लिं, वंदे मुणिसुव्वयं, नमि-जिणं च।
वंदामि रिट्ठनेमिं, पासं तह, वद्धमाणं च ।4।
एवं मए अभित्थुआ, विहूय-रय-मला पहीण-जर-मरणा।
चउवीसंपि जिणवरा, तित्थयरा मे पसीयंतु ।5।
कित्तिय-वंदिय-महिया, जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा।
आरुग्ग-बोहिलाभं, समाहि-वर-मुत्तमं दिंतु ।6।
चंदेसु निम्मलयरा, आइच्चेसु अहियं पयासयरा।
सागर-वर-गंभीरा, सिद्धा, सिद्धिं मम दिसंतु ।7।
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8.सामायिक लेने का पाठ
करेमि, भंते! सामाइयं, सावज्जं जोगं पच्चक्खामि।
जावनियमं (जितनी सामायिक करना हो, उतनी
संख्या बोलना) मुहुत्तं पज्जुवासामि। दुविहं-तिविहेणं,
न करेमि, न कारवेमि, मणसा-वयसा-कायसा, तस्स भंते!
पडिक्कामामि, निंदामि, गरिहामि, अप्पाणं वोसिरामि।
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9.णमोत्थुणं-प्रणिपात-सूत्र पाठ
णमोत्थु णं, अरिहंताणं, भगवंताणं ।1।
आइगराणं, तित्थयराणं, सयं-संबुद्धाणं ।2।
पुरिसुत्तणामं, पुरिस-सीहाणं, पुरिस-वर-
पुंडरियाणं, पुरिस-वर गंधहत्थीणं ।3।
लोगुत्तमाणं, लोगं-नाहाणं, लोग-हियाणं-
लोग-पईवाणं, लोग-पज्जोय-गराणं ।4।
अभय-दयाणं, चक्खु-दयाणं, मग्ग-दयाणं-
सरण दयाणं, जीव-दयाणं, बोहि-दयाणं ।5।
धम्मं-दयाणं, धम्म-देसयाणं, धम्म-नायगाणं-
धम्म-सारहीणं, धम्म-वर-चाउरंत-चक्कवट्टीणं ।6।
दीवो, ताणं, सरण-गइ-पइट्ठाणं, अपिडहय-
वरनाण-दंसण-धराणं, वियट्ट-छउमाणं ।7।
जिणाणं-जावयाणं, तिण्णाणं-तारयाणं,
बुद्धाणं-बोहयाणं, मुत्ताणं-मोयगाणं ।8।
सव्वन्नूणं-सव्वदरिसणं, सिव-मयल-मरुअ-
मणंत-मक्खय-मव्वाबाह-मपुणरावित्ति, सिद्धिगइ-
नामधेयं ठाणं संपत्ताणं,*नमो जिणाणं, जियभयाणं ।9।
* (दूसरे णमोत्थुणं में संपत्ताणं के स्थान पर संपाविउ कामाणं बोलें।)
10.सामायिक पारने का पाठ
एयस्स नवमस्स सामाइयवयस्स, पंच अइयारा जाणिजव्वा,
न समायरियव्वा, तंजहा, मणदुप्पणिहाणे, वयदुप्पणिहाणे,
कायदुप्पणिहाणे, सामाइयस्स सइ अकरणया,
सामाइयस्स अणवट्ठियस्स करणया, तस्स मिच्छा मि दुक्कडं!
सामाइय वयं, सम्मंकाएणं, न फासियं, नपालियं, न तीरियं,
न किट्टियं, न सोहियं, न आराहियंआणाए अणुपालियं न भवइ;
तस्स मिच्छा मि दुक्कडं!
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